बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

कंक ऋषि की तपोभूमि कांकेर


कांकेर ऐतिहासिक महत्व का स्थान हैं। छत्तीसगढ़ राज्य के 36 गढ़ों में एक गढ़ कांकेर रियासत भी रहा हैं। कांकेर के नामकरण के बारे में दो किस्से प्रचलित हैं। कहा जाता है कि कंक ऋषि का यह तपोवन था वे यहां तपस्या किया करते थे जिसके कारण इसका नाम कंकेर पड़ा। दूसरा गढ़िया पहाड़ में कांके के बहुतायत में पेड़ हुआ करते थे। गर्भवती स्त्रियों की जचकी के बाद कांके के पेड़ के छाल को उबाल कर पिलाया जाता था, इस कारण शहर का नाम कांकेर पड़ा। 

कांकेर की पहचान ऐतिहासिक गढ़िया पहाड़

कांकेर शहर की पहचान एवं शान ऐतिहासिक गढ़िया पहाड़ हैं। गढ़िया पहाड़ में तत्कालीन राजाओं का किला था जहा कांकेर रियासत के चिन्ह अवशेष के रूप में आज भी मौजूद हैं, जो कांकेर के इतिहास को बयां करता हैं। लगभग 500 वर्ष पूर्व कांकेर रियासत के कण्डरा राजा धर्मदेव का निवास पहाड़ी के ऊपर किले में था। गढ़िया पहाड़ को गढ़िया किला के नाम से भी जाना जाता हैं। पहाड़ी के ऊपर जाने के रास्ते में किले के द्वार के अवशेष आज भी अपने अस्तित्व की कहानी कहते हुए मौजूद है, जिसे सिंहद्वार के नाम से जाना जाता हैं। गढ़िया पहाड़ में सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक स्थान जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता हैं वह है सोनई-रूपई तालाब। जो कि सैकड़ों फीट की ऊंचाई मे स्थित होने के बावजूद उसका पानी कभी नही सुखता। इसके साथ ही पहाड़ी पर स्थित है जोगी गुफा, टुरी हटरी, धर्मद्वार, झण्डा शिखर, फांसी भाटा, खजाना पत्थर, सिंहद्वार, सोनई रूपई तालाब, छुरी पगार (गुफा), शीतला मंदिर, शिव मंदिर एवं नवनिर्मित मां योगमाया कांकेश्वरी देवी का मंदिर। गढ़िया पहाड़ी में जाने के लिए दो तरफ से रास्ते हैं। एक राजापारा की ओर से सीढ़ी के द्वारा एवं दूसरी जोगी गुफा मेला भाठा की ओर से कच्चा मार्ग। 

दर्शनीय स्थल 

जोगी गुफा

मेलाभाटा की ओर से पहाड़ी के ऊपर जाने के लिए कच्चा मार्ग बना हुआ है, इस मार्ग में एक काफी विशाल गुफा स्थित हैं। कहा जाता हैं कि उस गुफा में एक सिद्ध जोगी तपस्या किया करते थे जिनका शरीर काफी विशाल था वहां उस जोगी के द्वारा पहने जाने वाला काफी विशाल खडऊ आज भी मौजूद हैं। इस कारण इस गुफा को जोगी गुफा कहा जाता हैं। 

टुरी हटरी 

पहाड़ी के ऊपर एक बड़ा सा मैदान स्थित है। उस मैदान में किले में निवास करने वाले राजा एवं उनके सैनिकों की आवश्यकता की वस्तुएं विक्रय करने के लिए बाजार लगा करती थी। इस बाजार में विक्रय करने के लिए लड़कियां सामाग्री लाया करती थी। इसी कारण इसका नाम टुरी हटरी (बाजार) पड़ा।

धर्मद्वार

किले में आने जाने के लिए राजा धर्मदेव के द्वारा इस मार्ग का उपयोग किया जाता था। यह किले के पीछे का रास्ता हैं। इस ओर से कांकेर शहर एवं ग्राम गढ़पिछवाड़ी की ओर जाने का रास्ता हैं। 

झण्डा शिखर

गढ़िया पहाड़ को दूर से देखने में जो सबसे ज्यादा आकर्षित करता है वह है गढ़िया पहाड़ का मुकुट झण्डा शिखर। इस स्थान पर राजा का राजध्वज फहराया जाता था। जिस लकड़ी के खंम्बे में झण्डा फहराया जाता था उसके अवशेष वहां आज भी मौजूद हैं। कहा जाता है कि जब राजा किले में रहते थे तो झण्डा शिखर पर ध्वज लहराता रहता था एवं राजा के दौर में रहने पर ध्वज को उतार लिया जाता 
था। ध्वज के कारण प्रजा को मालूम हो जाता था कि राजा किले में हैं या नही।

फांसी भाटा

झण्डा शिखर के पास ही फांसी भाठा स्थित हैं। इस स्थान से अपराधियों को राजा के द्वारा सजा ए मौत का फरमान जारी करने के बाद उन्हे पहाड़ी के नीचे धक्का दे दिया जाता था। एक बार एक अपराधी ने अपने साथ सजा देने वाले सैनिक का हाथ पकड़ कर उसे भी अपने खींच लिया जिससे अपराधी के साथ उस सैनिक की भी मौत हो गई। इस घटना के बाद सजा देने वाले सैनिक अपराधी को लबंे बांस से नीचे धक्का देने लगे। 

खजाना पत्थर

राजा का महल जिस स्थान पर था वहां एक विशाल ऊॅचा पत्थर मौजूद हैं। उस पत्थर को देखने में ऐसा प्रतीत होता है कि उसमें पत्थर का ही दरवाजा बना हुआ हैं जिसे खोल कर भीतर जाया जा सकता हैं। किवदन्ती है कि इस पत्थर के नीचे राजा ने अपना खजाना छुपाया हुआ हैं। इसी कारण इसे खजाना पत्थर कहते हैं। 

सिंहद्वार

गढ़िया पहाड़ के इतिहास की सच्चाई को बयां करता हुआ विशाल पत्थरों से निर्मित द्वार स्थित हैं इसे सिंहद्वार के नाम से जाना जाता हैं। राजापारा की ओर से सीढ़ी मार्ग के द्वारा जाने के रास्ते में यह द्वार पड़ता हैं। सिंहद्वार से लगा हुआ किले की चारदीवारी हुआ करती थी अब वो चारदीवारी ढ़ह गई हैं। किले की चारदीवारी जिन विशालकाय पत्थरों से निर्मित की गई थी वे अब भी उस स्थान पर गिरे पडे़ हुए हैं। 

सोनई रूपई तालाब

पहाड़ी के ऊपर तालाब ? यह सुनकर ही लोगों को अचरज होता है कि हजारों फीट ऊॅचे पत्थरों के पहाड़ में तालाब भी हो सकता है वो भी ऐसा जिसमें पानी भरा हो और जो आज तक कभी चाहे कितनी भी गर्मी पड़े सूखता ना हो। लोगों को आश्चर्यचकित कर देता हैं। 
इस तालाब के बारे में एक किवदन्ती है कि राजा धर्मदेव ने किले में निवास करने वाले लोगों के निस्तार के लिए तालाब निर्माण करवाया। किन्तु तालाब में पानी ठहरता ही नही था व सूखा ही रह जाता था। एक दिन राजा धर्मदेव की दो कन्याएं सोनई एवं रूपई उस सूखे तालाब में खेल रही थीं कि अचानक देवयोग से तालाब में पानी भर गया। अचानक आये पानी आने से सूखे तालाब में खेल रही राजा धर्मदेव की दोनो पुत्रियां डूब गई जिसके फलस्वरूप दोनो की मृत्यु हो गई। उसके बाद से कहा जाता है कि यह तालाब आज तक सूखा नही हैं। उस घटना के बाद से उस तालाब का नाम सोनई रूपई पड़ गया। 
इस तालाब की अपनी विशेषता है यहां का पानी पीने में मीठा लगता हैं। इस तालाब में नहाने से अनेक लोगों के असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं। यही कारण है कि इस तालाब की पूजा श्रद्धालूजन करते हैं। 

छुरी पगार (गुफा)

सोनई रूपई तालाब के पास ही एक गुफा हैं। जिसमें जाने का मार्ग एकदम सकरा हैं किन्तु उस गुफा में प्रवेश करने के बाद विशाल स्थान हैं, जहां सैकड़ों लोग बैठ सकते हैं। गुफा के मार्ग में छुरी के समान तेज धारदार पत्थर हैं। इसी कारण इसे छुरी गुफा कहा जाता हैं। कहते हैं कि किले में दुश्मनों के द्वारा हमला होने पर राजा अपने सैनिकों के साथ इसी गुफा में छुप जाते थे। 

शीतला मंदिर

तालाब के किनारे ही प्राचीन समय में राजा धर्मदेव ने शीतला देवी का मंदिर बनवाया था। उस मंदिर में देवी पिंड के रूप में थी जो अब दिखाई नही देता।  लगभग 8-9 वर्ष पूर्व इस मंदिर के पुजारी ने वहां दुर्गा की मूर्ति रख दी हैं। 

शिव मंदिर

सोनई रूपई तालाब के एक छोर में प्राचीन शिव मंदिर हैं। उस मंदिर में ऐतिहासिक महत्व की प्राचीनतम मूर्तिया रखी हुई हैं। शिवरात्रि के अवसर पर नगर पालिका परिषद कांकेर के प्रथम अध्यक्ष पं. विष्णु प्रसाद शर्मा जी ने मेले का आयोजन सन् 1952 से प्रारंभ करवाया था। तब से लेकर आज तक प्रत्येक शिवरात्रि के अवसर पर पहाड़ी के ऊपर विशाल मेला लगता आ रहा हैं। 

मां योगमाया कांकेश्वरी देवी मंदिर

कांकेरवासियों ने श्रीश्री योगमाया कांकेश्वरी देवी ट्रस्ट का गठन करके पहाड़ी पर मंदिर का निर्माण कराया एवं 2 जुलाई 2002 को विधिवत पूजा अर्चना करके मां योगमाया दुर्गा की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा शहर के गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में की गई। कांकेर वासियों की अराध्य देवी होने के इसका नामकरण मां योगमाया कांकेश्वरी देवी किया गया। जिसका आशय है कांकेरवासियों की देवी मां योगमाया। 
देवी मंदिर की स्थापना के साथ ही चैत्र एवं कुंवार नवरात्र पर्व के अवसर पर मनोकामना ज्योति कलश की स्थापना की जा रही हैं। चैत्र एवं क्वांर नवरात्र पर्व पर गढ़िया पहाड़ी के ऊपर मेला भरने लगा हैं। कांकेर को देश में पर्यटन केन्द्र के रूप मंे पहचान मिले यह सोच कर कांकेरवासियों ने सन् 2006 क्वांर नवरात्र से कांकेर गढ़िया महोत्सव का आयोजन मेलाभाठा मैदान में प्रारंभ किया हैं। जो कि अब पूरे छत्तीसगढ़ में अपनी विशिष्ठ पहचान बना चुका हैं।